Saturday, 6 June 2020

Rajasthan Pre BPED 2020 , Rajasthan University Pre B.P.Ed Entrance Exam 2020

Rajasthan University Pre B.P.Ed Entrance Exam 2020:- Rajasthan University Will Organized Rajasthan Pre B.P.Ed Exam 2020. B.P.Ed Online Form 2020 Rajasthan Start 04/06/ 2020. Bped Rajasthan 2020 Duration of This Course Is of 2 Years. Through This Article, Rajasthan Pre BPED 2020 , बीपीएड एडमिशन 2020 Pre Bped 2019 Rajasthan www.pbped.com 2020 Bped Rajasthan University 2020 बीपीएड राजस्थान 2020 बीपीएड ऑनलाइन फॉर्म 2020  B.p.ed Admission 2020 Rajasthan Etc.

Key Point Pre B.P.Ed Exam 2020:- 
1.) Exam Category  :- Certificate
2.) Exam Conducting Authority :- Rajasthan University 
3.) Level of the Entrance Exam :- State Level
4.) Examination Mode :- Offline
5.) Number of Attempts :-  Not fix
6.) Application Mode :- Online

Rajasthan Pre BPED Application Fee:- Application Fee Rs:- 700

Ready Document Online Form Apply Time Required:- 
1.) Email ID and Personal Mobile Number
2.) Birth Certificate ( 10th Class Mark Sheet) 
3.) Qualification Certification
4.) Identity Card or Address Proof ( Aadhar Card/ Vote ID Etc)
5.) Password Size Photograph, Signatures
6.) Caste Certificate






How to Apply Rajasthan Pre B.P.Ed Online Form 2020:-
1.) Visit Official Website Following Link Below.
2.) Create Login Carefully and Complete Application Form Online.
 3.) Carefully Fill in the Information. You Can Change Personal Information Once You Apply for Post.
4.) Fill the Form with Required Details and Upload Your Signature and Photograph Etc .
5.) Click on Online Apply Button and Take Print Out of Auto Generated Application Form for Future Reference


Apply Here
http://www.pbped2020.com/
http://www.pmped2020.com/

Thank You
Karan Singh Charan
Whatsapp : 8619394950
E-mail : karanbarth@gmail.com

Wednesday, 1 February 2017

चारण राजपूतो का सम्बन्ध

चारण और राजपूतो का सनातन काल से सम्बन्ध

दो आखर – ठा. नाहरसिंह जसोल

 November 19, 2015 Charans.org

ठा. नाहरसिंह जसोल द्वारा लिखित पुस्तक “चारणों री बातां” की भूमिका “दो आखर”

चारणों सारूं आदरमांन, श्रद्धा, अटूट विश्वास रजपूत रै खून में है। जुगां जुगां सूं चारणों अर रजपूतां रै गाढ़ा काळलाई सनातन संबन्ध रया है। आंपणों इतिहास, आंपणी परम्परावां, रीत-रिवाज, डिंगल साहित्य अर जूनी ऊजळी मरजादां, इण बात रा साक्षी है।

केतांन बरसां तक ओ सनातनी सम्बन्ध कायम रयौ। न्यारौईज ठरकौ हौ। पण धीरे धीरे समय पालटो खायौ अर उण सनातनी संबन्धों में कमी आण लागी। ऐक दूजा रै अठै आण-जाण कम व्हे गयो, अपणास में कमी अर खटास आय गई, ओळखांण निपट मिट गई। इण सब बातां सूं जीव कळपण लागौ अर सन् 1982 में ‘क्षत्रिय दर्शन’ नांमक मासिक पत्रिका में म्है टूटतै काळजे अेक लेख लिख्यौ, वो इण भांत है- ‘राजपूत अर चारणों रा संबन्ध’

राखण ने रजवट धरा, और न दूजी ओळ।
देवगुणां कुल् चारणां, पूजां थांरी प्रोळ।।

राजपूतों सारूं चारण जुगों-जुगों सूं पूजनीक रियो है। चारण शब्द मूंडा मांय सूं निकळतां पांण राजपूत रो माथौ श्रद्धा अर भक्ति सूं झुक जावै। राजपूत सारूं चारण आदि काळ सूं साचौ हितेषी अर साचे मारग माथै टोळणीयौ रह्यो है। चारण नें सही सूं राजपूतां रो गुरू भी कैवां तो कोई म्होटी बात नी व्हैलाः

रजवट रै चारण गुरू, चारण मरण सिखाय।
बलिहारी गुरू चारणां, खिण तप सुरग मिलाय।।

चारण, राजपूत नें अधर्म अर अनीति सूं बचावण वाळी चालती फिरती गीता, अर अंधकार सूं ऊजाळा रूपी सतमारग माथै लेजावण वाळी अखंड जोत रही है। हजारों, लाखों गीत, दोहा, छप्पय, सवैया, चारण कवीसरों रचिया वे आंपणे साहित्य रो अनमोल खजानो है।

कायर सूं कायर रजपूत नें आपरी जोशीली वांणी सूं बिड़दाय, रणखेतर में भेजण री शक्ति चारणों में हीज ही, अर मरियां पछै उणरी कीरत रा गीत रच उणने अजर अमर करण री पण खमता चारणों में हीज हीः

कायर नें लानत दीयै, सूरां नूं साबास।
रण अरियां नें त्रास दै, चारण गुण री रास।।

चारण वाणी रे ओजस रो ऐड़ो उदाहरण संसार रे इतिहास अर साहित्य में कठैई नजर नी आवै।

जस आखर लिखै न जठै, वा धरती मर जाय।
संत, सती अर सूरमा, ऐ ओझळ हो जाय।।

अर ऐ जसा रा अनमोल अर मीठा आखर लिखण वाळा और कोई नी पण चारण कवीसर ही जुगों सूं आपरो चारण धर्म निभाता आया है।

जे चारण जात नी व्हेती तो, नी तो राजपूतों रो ऊजळो इतिहास वेतो, नी वीर गाथावां वेती, नी काव्य वेतो, नी डिंगल साहित्य ही वेतो। वांणी अर कलम रा धणी इण कवीसरों वांरी ओजस्वी रचनावां, कोरी वीररस में ही नी रची। भक्ति, श्रंगार, करूण, व्यंग, हास्य, रस में अनेक रचनावां सृजित कर इतिहास अर साहित्य रो अनमोल खजानों आवण वाळी पीढि़यों सारूं छोड़, अमर व्हे गया।

जोधपुर रा महाराजा मांनसिंहजी चारणों रा अटूट पुजारी हा। घणा फूटरा आखरां में वां चारणां सारूं आपरी श्रद्धा इण मुजब दरसाईः

चारण तारण क्षत्रियां, भगतां तारण रांम।
इक अमरापुर ले चले, इक नव खंड राखै नांम।।

आगे फेर देखाओः

अकल, विद्या, चित ऊजळा, इधको घर आचार।
वधता रजपूतां विचै, चारण वातां च्यार।।

राजपूत अर चारणों रा रीत-रिवाज, खांण-पांण, पैहरवास सब एक है। फरक इतोइज है कि एक चारण है अर दूजो राजपूत। एक शरीर रा दो अंग। चारण साची कैवण में कदेई संकोच नहीं करियो नी वांरे दिल में कदेई डर रियौ। कठेई कोई राजपूत ऊंदौ कांम करियौ तो वांने फटकारण में जेज नी कीवी अर फटकारियां ई एैड़ा कड़वा आखरां में कै सीधी काळजा माथै चोट लागै।

जोधपुर रे महाराजा बखतसिंह जी जद वांरे बाप अजीतसिंहजी री हत्या करी तो चारण कवि कीकर चुप बैठा रैहताः

बखता बखत्त बाहिरा, क्युं मार्यो अजमाल।
हिन्दुवांणी रो सेवरो, तुरकोंणी रो साल।।

अर अजीतसिंहजी जद वांरी बेटी इन्दरकंवर रो डोलो बादशाह फर्रुकशियर रै भेजीयौ तौ भभूत दांन जी रौ काळजौ फाट गयौः

काळच री कुल में कमंध, राची किम या रीत।
दिल्ली डोलो भेज नैं, अभकी करी अजीत।।

इण भांत री टूटतै काळजै सूं निकलीयोड़ी फटकारों सूं मध्यकालीन साहित्य भरियौ पडि़यौ है।

जद मौकौ आयौ, इण चारण कवीसरों राजपूतों ने शरणौं देय उणां री रक्षा पण करी। राव वीरम री विधवा रांणी मांगलीयांणी जी उणां रे बेटे चूंडा ने लेय आल्हाजी चारण रे घरे शरणौ लियौ। आल्होजी नें जद चूंडा री सही जांणकारी मिळी तो उण ने महेवै जाय रावल मलीनाथजी नें सूंपियौ।

जिण जात में महान सगतां प्रगट होवे वा तो पूजनीक है हीज, अर ऐ सगतां चारण जात में हीज प्रगट हुईः

किण कुळ सूरां, किण सती, इण दो गुणां जगत्त।
तिगुण गुणां कुल चारणां, सूरां, सती, सगत्त।।

चारण कुळ में प्रगटी इण देवियां, राजपूतों ने खळखळे मन सूं आशीष देय मोटा-मोटा भूभाग रा राजा बणाया, पर, वां खुद रे जात अर कुळ मांय सूं किणनेई आशीष देय मोटा राज रो धणी नी बणायौ।

देवी आवड़जी सिंध रै सूमरों रो नाश करनै सम्माणा रे राजपूतों ने सिंध रो राज दियौ।

सन् 1302 ई. में अल्लाउद्दीन खिलजी सूं हार, हमीर मेवाड़ छोड़ गुजरात कांनी गयौ। ओठै महामाया वरवड़ीजी हमीर ने हिम्मत बंधाई, आसीरवाद दियौ अर उणने पाछौ मेवाड़ ऊपर हमलो करण री आज्ञा दी। वरवड़ीजी री कृपा सूं मेवाड़ ऊपर पाछौ सिसोदियां रो राज थिरपीजियौ।

देवी करणीजी रै प्रताप सूं जोधा नें मारवाड़ अर बीका नें बीकानेर रो राज मिल्यौ। इणीज कारण न्यारी-न्यारी राजपूत शाखाओं में कुळदेवियों रे रूप में आज ई ऐ देवियां पूजीजैः

आवड़ तूठी भाटियों, कामेही गौड़ोंह।
श्री बरबड़ सीसोदियों, करणी राठौड़ोंह।।

जद अन्याय अर स्वार्थ रे नशा में आय, दो राजपूत घरांणा एक दूजा नें खतम करण री तेवड़ी तो उण अबखी वेळा में केतांन चारणों फौज रे विचै जाय वांनै मनावण री कोशीश करी, अर जद कोई नी मांनीया तो खुद रे पेट में कटारी खाय मर गया। चारण रो खून पड़तां ही दोनू कांनी खींचीजियोड़ी तलवारों म्यानां में पाछी जावती, अर भाई-भाई रे खून रा तिरसा, नीची गाबड़ कियां पछतावा रो पोटक माथै बांध, पाछा घरे जावता। राजपूत जात सारूं इत्तो मांन, सम्मांन, अपणायत, अर प्रेम रो रिश्तो, चारणों सिवाय कुण निभावै।

महाराजा मांनसिह जी जालोर रै किला में घेरीज गया। राशन पांणी निठ गया। सिपाहीयौं रै भूखां मरण री नौबत आय गई। जद मांनसिंह जी वांरै विश्वास पात्र कवि जुगतीदांनजी वणसूर नें वौकारिया।

जुगतीदांन जी कनै पईसा कठै।

पण जिण विस्वास सूं महाराजा वांने छांटी भळाई तो उणरी तो तामील करणीज ही।

जुगतीदांनजी भेस पलट, खुद रै जीव नै जोखम में न्हांख, किले बारै निकळ गया। घरे जाय, गैणां गांठो हो, उणने बेच मांनसिंहजी री मदद कीवी।

थोड़ा दिनों पछै फेर नांणा री जरूरत पड़ी। घेरो ऊठण रा आसार दिखै नहीं। पाछा जुगतीदांन जी याद आया। जुगतीदांन जी पण पूरा सांमधरमी।

ना कीकर देवै।

भेस पलट पाछा किला बारै निकळ घरे गया। गैणां गांठो तो पेली बेच दियो। हमैं कांई बेचे। वां तो डावो देख्यौ न जीमणौ, खुद रे बेटे भैरजी नें एक महंत (भाडखै रा या खारै रा) रे ओठे अडांणे मेल रूपियो लेय मांनसिंह जी नें नजर किया।

थोड़ा दिनां सूं देवजोग सूं जोधपुर महाराजा भीमसिंह जी रो सुरगवास व्हे गयो। मांनसिंह जी ने मारवाड़ री गादी पर बैठाया।
जुगतीदांनजी रै उपकार नें राजाजी कीकर भूलता। किले माथै बुलाय, लाख पसाव देय पारलू री जागीर दीवी, अर वांने हाथी ऊपर बैठाय खुद हाथी रै आगे किला री सिरे पोळ तेक पैदल चाल वांने, नवाजिया।

राजपूत रे घर में चारण, कविराजा, बारठजी, बाबोसा, बाजीसा रे नांमां सूं जांणीजे। ऐड़ो कोई मौको नी जद राजपूत रे घरे बाजीसा नी लादै। वांरे बिना कोई मौको नी सज सकै। वांरै बिना घर रा सगळा खुशी रा मौका फीका। जद कदेई सलाह-सूद री जरूरत पड़े बुलावौ बाजीसा नें। सगाई सगणपण करणौ व्है, पूछो बाजीसा नें। दो लडि़योड़ा भायौं बिच्चे राजीपो कराणों व्है, बुलावौ बाजीसा ने। अर मरणे परणे बाजीसा रो होणो जरूरी। ब्याव, शादी, सगाई, सगपण में जठा तक बाजीसा नी पधारे, सारी सभा सूनी। ज्युं ई बाजीसा आया, सभा में रंग आय जावे। सारा ही सभासद ऊठ ने बाजीसा नें आदर देवे। ठाकर सांमां जाय पगां रे हाथ लगाय घणे मांन सूं बधाय बाजीसा ने ऊंचे आसण बैठावै। अमल री डोढ़ी मनवारों होवे और खारभजणा लियां पछे घणे जोर सूं खैंखारो कर ने सैंगही सभासदों रो ऊतरियोड़ौ अमल उगावै अर पछै बातों रा अर दूहों रा दपट्टा उडै, जिणने सुणतां कोई थाकैई नी। चिलमां और हुक्कों में पण नवी जिन्दगी आय जावै। वेई एक हाथ सूं दूजे हाथ सभा चालै जितै चालबो करे।

राजपूत घरों री सउवाळीयां आपरै बडेरां सूं, मरजाद मुजब लाज सरम करै, पड़दो राखै, पण बाजीसा सूं, कोई पड़दो नी। वे निसंकोच आंगणें आय जाय सकै। कोई समाचार बारे मिनखां में कैवाणा व्है तो बाजी सा कैहवै। बाजी सा आवे जद जांणे वांरे बाप घरे आवै जितौ कोड करे। वांने आंगणे बुलावै। ऊंचे आसन उपर बैठाय, कंकू चावळ रा तिलक करै, अर घणै कोड सूं आपरा हाथ सूं वांनें जीमावै। और जे जीमण में कमी रैय जावे तो बाजीसा रे नाराज हो जावण रौ पण डर हर घड़ी रैहवै।
टाबर तौ बाजी सा रौ एक घड़ी लारौ नी छोड़ै। बाजीसा ‘बात मांडो नी’ री जिद सूं वांने छोड़ैईज नी। जठा तक एक दो चुटकला नी सुणाय देवै, टाबर लारो नी छोड़ै। अर बाजीसा जद घणाईज काया व्हे जावै तो जेब सूं मखांणा, नवात, खाटी, मीठी, बटियां देय आपरो पिंड छुड़ावै। छोटे सूं मोटा तक बाजीसा बाजीसा करता थाकै नीं। अर बाजीसा पण वांसूं बातां और कवितावां में इत्ता रीझ जावै के खावण पीवण री सुध नी रैहवै। बाजी सा रै सभा में रैहतां, दिन कद ऊगे कद आथमें, कांई पतो नी पड़ै। ऐड़ो गहरौ सनातन राजपूतों सारूं बाजीसा सूं बढने किण रे साथे व्है सकै।

समय बीत गयौ। बातां रैय गई। मन एक ठंडो ऊंडो निसासो छोड़ नें रैय जावै। इण ठालै भूलै बदलते समय, यां दोनूं जातां रे बीच पीढि़यां रे बणियोड़े कालजा रे सनातन अर प्रेम नें झकझोर दीनो। सुरगवासी नाथुदांनजी महियारिया रो काळजो टूक-टूक व्हे गयौ जद वां इण दोनूं जातां रै आपसी सनातन में कमी आती दीठी अर आपरै हीया री ऊमस नीचे, लिखी ओळियां में निकाळीः

वे रण में बिड़दावता, वे झड़ता खग हूंत।
वे चारण किण दिस गया, किण दिस गा रजपूत।।

एक फेर कवीसर इण ही सारुं कैयो हैः

कुण तौ कैवै, कुण सुणें, दोनूं पूत कपूत।
म्हां जिसड़ा चारण रया, थां जिसड़ा रजपूत।।

जिण रजपूत रै घरे चारण रौ आण जाण होवे वो घर मंदिर ज्यूं पवित्र होवे। यां देवी पुत्रों रे संपर्क सूं सद्बुद्धि रौ संचार होवे। वांरी आशीष सूं रजपूत रो सदा ही भलो होवे, ऐड़ी म्हारी मांनता है।

ऊपर लिखिया कारणों रै कारण, मन में आई कै क्यूं नी म्हारी च्यार पांच पोथियां में छपी चारणों री न्यारी-न्यारी बातों ने भेळी कर, अेक न्यारी पोथी छपाऊं ताके चारणों री सगळी बातां अेके ठौड़ आय जावै। अर छेहली ऊमर में, जातां-जातां, इण अमोलक जात ने, इण पोथी रै पांण, छेहला जुहारड़ा कर, म्हां माथै चढि़योड़ा करज नैं थोड़ोक कम कर सकूं।

इण पोथी में आयोड़ी जूनी बातां में वां जूना मिनखां रा ऊजळा आदर्श है, त्याग है, तपस्या है, मिनखी पणा री केतांन मिसालों है। आशा है पाठकवृंद यां आदर्शों ने आपरै जीवण में ढ़ाळ, वांरो जीवन सार्थक बणावण रो जतन करसी।

दीवाळी 2011                                                               आपरोहीज
करणी कुटीर                                                                       ठा.नाहरसिंह जसोल
मु.पो. जसोल
जिला – बाड़मेर
मो. 9950791015

Prime Minister Narendra Modi and Chinese President Xi Jinping engage in a brief interaction at the 15th BRICS Summit, in Johannesburg on Thursday. (ANI)

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